Sunday, December 14, 2025
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भारत और श्रीलंका ने आयकर और दोहरे कराधान से बचाव के लिए प्रोटोकॉल संशोधन समझौते पर हस्ताक्षर किए।

भारत और श्रीलंका ने हाल ही में दोहरे कराधान से बचाव और आयकर से संबंधित वित्तीय चोरी की रोकथाम के लिए एक प्रोटोकॉल संशोधन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूत करने और कराधान से जुड़े मुद्दों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

समझौते का उद्देश्य

इस प्रोटोकॉल का मुख्य उद्देश्य दोहरे कराधान की समस्या का समाधान करना है, जिससे एक ही आय पर दोनों देशों में कर न लगाया जाए। साथ ही, यह आयकर से संबंधित वित्तीय चोरी और कर अपवंचन की गतिविधियों को रोकने के लिए आवश्यक प्रावधानों को सुदृढ़ करता है।

समझौते के प्रमुख बिंदु

  1. दोहरे कराधान से बचाव: इस प्रोटोकॉल के माध्यम से, दोनों देश यह सुनिश्चित करेंगे कि एक ही आय पर दो बार कर न लगाया जाए, जिससे निवेशकों और व्यापारियों को कर संबंधी स्पष्टता और सुरक्षा मिलेगी।
  2. वित्तीय चोरी की रोकथाम: समझौते में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो कर अपवंचन और वित्तीय चोरी की गतिविधियों को रोकने में मदद करेंगे, जिससे कराधान प्रणाली की पारदर्शिता बढ़ेगी।
  3. सूचना का आदान-प्रदान: दोनों देश कराधान से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान करेंगे, जिससे कर अपवंचन की गतिविधियों पर निगरानी रखना और उन्हें रोकना संभव होगा।
  4. सामान्य दुरुपयोग रोधी प्रावधान: प्रोटोकॉल में सामान्य दुरुपयोग रोधी प्रावधान शामिल हैं, जो कर संधि के दुरुपयोग को रोकने में सहायक होंगे।

समझौते का प्रभाव

इस प्रोटोकॉल के लागू होने से भारत और श्रीलंका के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। निवेशकों को कर संबंधी स्पष्टता और सुरक्षा मिलने से वे दोनों देशों में निवेश के लिए प्रोत्साहित होंगे। साथ ही, कर अपवंचन और वित्तीय चोरी की गतिविधियों पर अंकुश लगने से सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी।

पृष्ठभूमि

भारत और श्रीलंका के बीच मौजूदा दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAA) 22 जनवरी 2013 को हस्ताक्षरित हुआ था और 22 अक्टूबर 2013 को लागू हुआ था। इस प्रोटोकॉल के माध्यम से, मौजूदा समझौते में आवश्यक संशोधन किए गए हैं ताकि यह वर्तमान अंतरराष्ट्रीय मानकों और आवश्यकताओं के अनुरूप हो सके।

निष्कर्ष

भारत और श्रीलंका के बीच यह प्रोटोकॉल संशोधन समझौता दोनों देशों के आर्थिक और कराधान संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इससे न केवल दोहरे कराधान की समस्या का समाधान होगा, बल्कि कर अपवंचन और वित्तीय चोरी की गतिविधियों पर भी प्रभावी रोक लगेगी, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश के नए अवसर उत्पन्न होंगे।

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