बोफोर्स घोटाला भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है, जिसने 1980 के दशक के अंत में देश की राजनीति को हिला कर रख दिया था। यह घोटाला न केवल तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के पतन का कारण बना, बल्कि कांग्रेस पार्टी की साख पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। इस लेख में, हम बोफोर्स घोटाले, कांग्रेस की संलिप्तता, और एडवर्ड हर्शमैन द्वारा उजागर किए गए तथ्यों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
बोफोर्स घोटाला: एक परिचय
1986 में, भारत सरकार ने स्वीडिश कंपनी एबी बोफोर्स के साथ 1,437 करोड़ रुपये का समझौता किया, जिसके तहत भारतीय सेना को 400 155 मिमी हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति की जानी थी। यह सौदा उस समय भारतीय रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया था। हालांकि, 1987 में स्वीडिश रेडियो ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि इस अनुबंध को हासिल करने के लिए बोफोर्स ने शीर्ष भारतीय अधिकारियों और राजनेताओं को रिश्वत दी थी। इस खुलासे ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया और इसे ‘बोफोर्स घोटाला’ के नाम से जाना गया।
कांग्रेस की संलिप्तता
बोफोर्स घोटाले के खुलासे के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस पार्टी पर गंभीर आरोप लगे। आरोप थे कि इस सौदे में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने रिश्वत ली थी। स्वीडिश कंपनी पर आरोप था कि उसने सौदे की सफलता के लिए बिचौलियों को 40 मिलियन डॉलर का भुगतान किया था। स्वीडन के नेशनल ऑडिट ब्यूरो की एक रिपोर्ट में अनुचित प्रभाव की उपस्थिति के साथ इस आरोप की पुष्टि की गई, हालांकि राजीव गांधी सरकार ने इसका खंडन किया था। इन आरोपों के परिणामस्वरूप, 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा, और वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने।
एडवर्ड हर्शमैन के तथ्य
एडवर्ड हर्शमैन, एक प्रसिद्ध खोजी पत्रकार, ने बोफोर्स घोटाले पर गहन शोध किया और कई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए। उन्होंने अपनी रिपोर्टों में बताया कि कैसे स्वीडिश कंपनी ने भारतीय अधिकारियों को रिश्वत दी और इस पूरे घोटाले की जटिलताओं को उजागर किया। हर्शमैन के शोध ने इस घोटाले की गहराई को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय जनता के सामने सच्चाई लाने में मदद की।
घोटाले के परिणाम और प्रभाव
बोफोर्स घोटाले के परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए:
- सरकार का पतन: राजीव गांधी की सरकार को 1989 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, जिससे वी.पी. सिंह के नेतृत्व में नई सरकार बनी।
- कांग्रेस की साख पर असर: इस घोटाले ने कांग्रेस पार्टी की साख को गंभीर नुकसान पहुंचाया, जिससे पार्टी को लंबे समय तक राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा।
- भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता: इस घोटाले ने भारतीय जनता में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई और भविष्य में ऐसे मामलों के प्रति सतर्कता बढ़ी।
निष्कर्ष
बोफोर्स घोटाला भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने न केवल तत्कालीन सरकार को गिराया, बल्कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता भी बढ़ाई। कांग्रेस की संलिप्तता और एडवर्ड हर्शमैन द्वारा उजागर किए गए तथ्यों ने इस घोटाले की गहराई को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह घटना हमें सिखाती है कि पारदर्शिता और ईमानदारी किसी भी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं, और जनता को हमेशा सतर्क रहना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे घोटाले न हों।




