क्या महाराष्ट्र में दो तरह के कानून चलते हैं? – एक विश्लेषण
भारत के संविधान के अनुसार, सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है, लेकिन कई बार यह सवाल उठता है कि क्या कानून वास्तव में सबके लिए समान रूप से लागू होता है? खासकर महाराष्ट्र में कुछ घटनाएँ ऐसी हुई हैं, जिससे यह बहस तेज हो गई है कि क्या राज्य में दो तरह के कानून चलते हैं—एक आम नागरिकों के लिए और दूसरा प्रभावशाली लोगों के लिए?
इस लेख में, हम इस प्रश्न का गहराई से विश्लेषण करेंगे। हम देखेंगे कि क्या न्यायिक और प्रशासनिक फैसले वास्तव में निष्पक्ष हैं, या फिर कानून कुछ खास लोगों के लिए अलग तरह से काम करता है?
1. कानून का सिद्धांत: सबके लिए समान या अलग-अलग?
भारतीय संविधान अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। इसका अर्थ यह है कि कानून का पालन सभी को समान रूप से करना होगा, चाहे वह गरीब हो या अमीर, नेता हो या आम नागरिक।
✔ अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
✔ अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव पर रोक
✔ अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
लेकिन क्या यह वास्तविकता में लागू होता है? महाराष्ट्र में हाल ही में कुछ मामलों ने इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
2. महाराष्ट्र में हाल की घटनाएँ जो कानून की निष्पक्षता पर सवाल उठाती हैं
(क) राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कार्रवाई में भेदभाव?
महाराष्ट्र में राजनीतिक नेताओं और आम नागरिकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में बड़ा अंतर देखने को मिला है।
1. संजय राउत पर कार्रवाई बनाम अन्य नेताओं पर नरमी
- शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 2022 में भूमि घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया।
- लेकिन भाजपा से जुड़े कई नेताओं के खिलाफ जांच धीमी रही या उन्हें राहत दी गई।
2. अनिल देशमुख की गिरफ्तारी और अन्य मामलों में भेदभाव
- एनसीपी के अनिल देशमुख को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया और लंबी जेल की सजा मिली।
- लेकिन भाजपा नेताओं के खिलाफ कई गंभीर आरोपों के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई।
(ख) बॉलीवुड और आम जनता के लिए अलग कानून?
1. शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ड्रग केस बनाम अन्य मामलों में राहत
- आर्यन खान को ड्रग्स मामले में गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में कोर्ट ने कहा कि उनके पास से कोई ड्रग्स बरामद नहीं हुआ था।
- लेकिन दूसरी तरफ, अजय देवगन और अन्य सेलेब्रिटीज का गुटखा और शराब के विज्ञापन में आना कोई मुद्दा नहीं बना।
2. सलमान खान हिट एंड रन केस बनाम आम नागरिकों के केस
- सलमान खान का हिट एंड रन मामला 20 साल तक चला, और अंत में उन्हें राहत मिल गई।
- लेकिन अगर यही घटना किसी आम नागरिक के साथ होती, तो उसे तुरंत सजा मिल जाती।
(ग) धार्मिक आधार पर कार्रवाई में अंतर?
1. औरंगजेब की तारीफ करने वालों पर कार्रवाई, लेकिन नाथूराम गोडसे की प्रशंसा पर चुप्पी
- औरंगजेब को न्यायप्रिय बताने पर कई नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज की गई।
- लेकिन नाथूराम गोडसे को “देशभक्त” बताने वाले नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
2. मांसाहार को लेकर दोहरे मापदंड
- कुछ जगहों पर हनुमान चालीसा पढ़ने पर कार्रवाई हुई लेकिन बीफ (गौमांस) बेचने की अनुमति दे दी गई।
- यह दर्शाता है कि धार्मिक मामलों में भी कानून का अलग-अलग उपयोग किया जाता है।
3. पुलिस और प्रशासन पर राजनीतिक दबाव?
महाराष्ट्र पुलिस और प्रशासन पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि उनके फैसले राजनीतिक दबाव में होते हैं।
✔ अगर सरकार बदलती है, तो केस बंद हो जाते हैं या फिर नए केस खोले जाते हैं।
✔ पुलिस नेताओं के इशारों पर कार्रवाई करती है, बजाय निष्पक्ष जांच करने के।
✔ असहमति रखने वाले कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर तुरंत कार्रवाई होती है, जबकि सत्ताधारी दल के लोगों को राहत मिलती है।
उदाहरण:
- पत्रकार अर्नब गोस्वामी को जबरदस्ती गिरफ्तार किया गया, लेकिन विरोधी दल के पत्रकारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
- कंगना रनौत का ऑफिस तोड़ दिया गया, लेकिन दूसरी तरफ, कई बिल्डिंगों के अवैध निर्माणों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
4. न्यायपालिका की भूमिका: क्या कोर्ट में भी भेदभाव है?
महाराष्ट्र की कई न्यायिक प्रक्रियाएँ इस ओर संकेत देती हैं कि कई मामलों में अदालतें भी अलग-अलग व्यवहार करती हैं।
✔ राजनीतिक नेताओं को जल्दी जमानत मिल जाती है, जबकि आम आदमी को सालों इंतजार करना पड़ता है।
✔ कुछ मामलों में फैसला तुरंत आ जाता है, जबकि कुछ मामलों को जानबूझकर लंबा खींचा जाता है।
उदाहरण:
- शरद पवार पर आरोप लगे लेकिन कभी ठोस जांच नहीं हुई।
- विपक्षी दलों के नेताओं को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है।
5. आम जनता के लिए न्याय पाना मुश्किल क्यों है?
महाराष्ट्र में आम आदमी के लिए न्याय पाना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया बन गई है।
✔ पुलिस केस दर्ज करने में देरी करती है।
✔ अदालतों में मुकदमे सालों तक चलते हैं।
✔ नेताओं और अमीरों को जल्दी जमानत मिल जाती है, लेकिन गरीब लोग सालों तक जेल में रहते हैं।
उदाहरण:
- भीमा-कोरेगांव मामले में कार्यकर्ताओं को सालों तक बिना ट्रायल जेल में रखा गया।
- कई छोटे अपराधों के आरोपियों को जमानत नहीं मिलती, लेकिन बड़े अपराधियों को तुरंत राहत मिल जाती है।
6. महाराष्ट्र में समान न्याय व्यवस्था कैसे लागू हो सकती है?
✔ पुलिस और प्रशासन को पूरी तरह से राजनीतिक दबाव से मुक्त करना होगा।
✔ अदालतों में सभी के लिए एक समान प्रक्रिया लागू करनी होगी।
✔ राजनीतिक मामलों में निष्पक्ष जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
✔ पब्लिक प्लेस पर कानून का पालन करवाना सभी के लिए समान होना चाहिए।
7. निष्कर्ष: क्या महाराष्ट्र में दो तरह के कानून चलते हैं?
✔ अगर हम घटनाओं और फैसलों को देखें, तो यह साफ दिखता है कि महाराष्ट्र में दो तरह के कानून हैं—
- एक आम नागरिकों के लिए, जिनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई होती है।
- दूसरा नेताओं, अमीरों और प्रभावशाली लोगों के लिए, जिन्हें विशेष छूट मिलती है।
✔ यह प्रवृत्ति न्याय प्रणाली में लोगों के विश्वास को कमजोर कर रही है।
✔ अगर महाराष्ट्र को न्यायप्रिय राज्य बनाना है, तो “दो कानूनों” की इस समस्या को खत्म करना होगा।




