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RSS प्रमुख मोहन भागवत का बयान

RSS प्रमुख मोहन भागवत का बयान

RSS प्रमुख मोहन भागवत का बयान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत अपने बयानों के माध्यम से समय-समय पर राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते रहे हैं। उनके हालिया वक्तव्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में चर्चाओं और विवादों को जन्म दिया है। इस लेख में, हम मोहन भागवत के कुछ प्रमुख बयानों और उन पर हुई प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करेंगे।

हिंदू समाज की एकता पर जोर

फरवरी 2025 में पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में एक सभा को संबोधित करते हुए, मोहन भागवत ने हिंदू समाज की एकजुटता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आरएसएस का उद्देश्य पूरे हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह देश का जिम्मेदार समाज है। भागवत ने विविधता में एकता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हिंदू समाज विविधता को स्वीकार करता है और इसे एकता का हिस्सा मानता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत केवल एक भूगोलिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि इसकी एक विशिष्ट प्रकृति है, जो इसे परिभाषित करती है।

मंदिर-मस्जिद विवाद पर टिप्पणी

दिसंबर 2024 में, मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों पर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं की आस्था का विषय था, लेकिन अब हर दिन नए विवाद उठाना उचित नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने का सिलसिला बंद होना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में विभाजन बढ़ता है। भागवत के इस बयान पर संत समाज ने नाराजगी जताई। अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि धार्मिक मामलों पर निर्णय धर्माचार्यों को लेना चाहिए, न कि आरएसएस जैसे सांस्कृतिक संगठनों को।

स्वतंत्रता पर विवादित बयान

जनवरी 2025 में, मोहन भागवत ने एक बयान में कहा कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि इस दिन देश को सच्ची स्वतंत्रता मिली थी। इस बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे राजद्रोह के समान बताया। उन्होंने कहा कि भागवत का यह बयान हर भारतीय का अपमान है और यह स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों का अपमान करता है।

आरक्षण पर पुनर्विचार की आवश्यकता

मोहन भागवत ने आरक्षण नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि आरक्षण का राजनीतिक उपयोग किया गया है और इसे एक अराजनीतिक समिति द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए, जो यह निर्धारित करे कि किसे और कितने समय तक आरक्षण की आवश्यकता है। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में व्यापक बहस को जन्म दिया।

निष्कर्ष

मोहन भागवत के बयानों ने समय-समय पर राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों पर गहन चर्चाओं को प्रेरित किया है। उनकी टिप्पणियाँ समाज के विभिन्न वर्गों में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करती हैं, जो एक जीवंत लोकतंत्र की निशानी है। यह आवश्यक है कि ऐसे बयानों का विश्लेषण संवेदनशीलता और समझदारी के साथ किया जाए, ताकि समाज में समरसता और एकता बनी रहे।

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