आरती कश्यप
भूमिका
शीतला अष्टमी, जिसे बसोड़ा पर्व के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व शीतला माता की उपासना के लिए समर्पित होता है और विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण स्वास्थ्य, समृद्धि और बीमारियों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
शीतला अष्टमी का पर्व होली के बाद पड़ने वाली अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से ठंडा भोजन ग्रहण करने की परंपरा होती है, जिसे बसोड़ा कहा जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी निहित हैं।
शीतला अष्टमी का महत्व
1. देवी शीतला की आराधना
शीतला माता को बीमारियों से बचाने वाली देवी माना जाता है। खासकर चेचक, खसरा, त्वचा रोग और संक्रामक बीमारियों से रक्षा के लिए इनकी पूजा की जाती है।
देवी शीतला के बारे में कहा जाता है कि:
“शीतला माता रोगों को हरने वाली और शुद्धता की प्रतीक हैं। उनकी कृपा से घर-परिवार निरोग रहता है।”
2. स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़ा पर्व
- शीतला अष्टमी पर ठंडा भोजन करने की परंपरा का वैज्ञानिक कारण यह है कि गर्मियों के मौसम में बासी भोजन में हानिकारक बैक्टीरिया उत्पन्न होने की संभावना होती है।
- यह पर्व हमें स्वच्छता और हाइजीन के महत्व को भी सिखाता है, जिससे रोगों से बचाव किया जा सके।
3. पारिवारिक और सामाजिक महत्व
- इस पर्व पर पूरे परिवार के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जिससे सामाजिक और पारिवारिक सौहार्द बढ़ता है।
- महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि
शीतला अष्टमी पर भक्तगण देवी शीतला की पूजा विशेष विधि से करते हैं:
1. व्रत और उपवास
- इस दिन कई श्रद्धालु व्रत रखते हैं और सिर्फ बासी भोजन (बसोड़ा) ग्रहण करते हैं।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर शीतला माता के मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं।
2. पूजन सामग्री और विधि
शीतला माता की पूजा में हल्दी, दही, बासी भोजन, मीठे पकवान, जल, फल और फूल अर्पित किए जाते हैं।
- मिट्टी के चूल्हे पर पका भोजन एक दिन पहले ही तैयार कर लिया जाता है।
- सुबह माता शीतला को भोग लगाकर ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
- इस दिन नया भोजन नहीं बनाया जाता और केवल ठंडा खाना खाया जाता है।
3. कथा और आरती
पूजा के दौरान शीतला माता की कथा सुनी जाती है, जिसमें बताया जाता है कि किस तरह माता अपने भक्तों को रोगों से बचाती हैं।
शीतला अष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथा
कहते हैं कि प्राचीन समय में एक गांव में लोग साफ-सफाई और स्वच्छता पर ध्यान नहीं देते थे, जिससे वहां महामारी फैल गई। गांव के लोग शीतला माता की आराधना करने लगे और माता ने उन्हें रोगों से मुक्ति दिलाई। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि हर साल शीतला अष्टमी पर देवी की पूजा कर परिवार की रक्षा की जाती है।.
शीतला अष्टमी का वैज्ञानिक पक्ष
1. बासी भोजन का महत्व
गर्मियों के मौसम में अधिक तैलीय और गरम भोजन खाने से शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है। शीतला अष्टमी पर ठंडा और हल्का भोजन करने से शरीर में ठंडक बनी रहती है और पाचन सही रहता है।
2. संक्रामक बीमारियों से बचाव
शीतला माता को चेचक और अन्य संक्रामक रोगों की देवी कहा जाता है। पुराने समय में जब टीकाकरण उपलब्ध नहीं था, तब इस दिन साफ-सफाई और रोगों से बचाव की सीख दी जाती थी।
3. पर्यावरण संतुलन और स्वच्छता
इस दिन जल स्रोतों की सफाई की जाती है, जिससे बीमारियों को फैलने से रोका जाता है।
शीतला अष्टमी पर्व कैसे मनाया जाता है?
1. भारत में शीतला अष्टमी का उत्सव
- उत्तर प्रदेश: वाराणसी, लखनऊ और प्रयागराज में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शीतला माता के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं।
- राजस्थान: जयपुर, उदयपुर और बीकानेर में शीतला माता के मंदिरों पर भव्य मेले लगते हैं।
- गुजरात और मध्य प्रदेश: यहां भी माता की आराधना धूमधाम से की जाती है।
2. विशेष व्यंजन
- इस दिन पूरी, पुए, मीठे चावल, दही-बड़े, हलवा और अन्य पकवानों को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
- निष्कर्ष
- शीतला अष्टमी केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, स्वच्छता और सामाजिक एकता का संदेश भी देता है। यह हमें बीमारियों से बचाव, संतुलित आहार और पर्यावरण संरक्षण की सीख देता है।
- आज के दौर में, जब संक्रामक रोगों और महामारी का खतरा बढ़ रहा है, तब इस पर्व की प्रासंगिकता और भी अधिक हो गई है। यदि हम स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें, तो न केवल अपना बल्कि समाज का भी कल्याण कर सकते हैं।
- क्या आप भी शीतला अष्टमी का पर्व मनाते हैं? यदि हां, तो इस बार इसे और भी धूमधाम से मनाएं और स्वच्छता का संकल्प लें!

