Sunday, December 14, 2025
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एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से संबंधित दो विधेयक आज लोकसभा में पेश किए गए।

17 दिसंबर 2024 को, भारत सरकार ने लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से संबंधित दो महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए: संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024। इन विधेयकों का उद्देश्य देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है, जिससे चुनावी प्रक्रिया को अधिक समन्वित और कुशल बनाया जा सके।

विधेयकों का उद्देश्य और प्रस्तावित संशोधन

संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 82क जोड़ा जाएगा, जो लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान करेगा। इसके साथ ही, अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद 172 (राज्यों के विधान मंडलों की अवधि) और अनुच्छेद 327 (विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति) में संशोधन का प्रस्ताव है। इस संशोधन के तहत, लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल एक साथ आरंभ होगा और समाप्त होगा, जिससे एक साथ चुनाव कराना संभव हो सकेगा।

केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 के माध्यम से पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ समन्वित करने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन किया जाएगा। इससे केंद्र शासित प्रदेशों में भी एक साथ चुनाव कराना संभव होगा।

विधेयकों की पृष्ठभूमि

1951 से 1967 तक, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। हालांकि, 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने और 1970 में लोकसभा के भंग होने के कारण यह प्रणाली बाधित हो गई। तब से, चुनाव अलग-अलग समय पर आयोजित किए जाने लगे। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा को पुनः स्थापित करने के लिए, सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया, जिसने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के आधार पर, ये विधेयक तैयार किए गए हैं।

विधेयकों की संसद में प्रस्तुति

17 दिसंबर 2024 को, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में इन विधेयकों को प्रस्तुत किया। विधेयक पेश करने के दौरान, सदन में व्यापक चर्चा हुई और मतदान प्रक्रिया अपनाई गई। पहले इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई, जिसमें पक्ष में 220 और विपक्ष में 149 वोट पड़े। बाद में, पर्ची से मतदान कराया गया, जिसमें पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 मत पड़े। इस प्रकार, विधेयक को सदन में प्रस्तुत करने की स्वीकृति मिली।

संयुक्त संसदीय समिति का गठन

विधेयकों की विस्तृत समीक्षा और अध्ययन के लिए, एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी कर रहे हैं। इस समिति में 39 सदस्य शामिल हैं, जिनमें 27 लोकसभा और 12 राज्यसभा से हैं। समिति का मुख्य कार्य इन विधेयकों की समीक्षा करना, संबंधित पक्षों से परामर्श करना और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करना है। समिति की पहली बैठक 8 जनवरी 2025 को आयोजित की गई, जिसमें सदस्यों को विधेयकों के प्रावधानों से अवगत कराया गया।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयकों पर राजनीतिक दलों की मिश्रित प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने इस पहल का समर्थन किया है, जबकि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने संघीय ढांचे और क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएँ व्यक्त की हैं। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने इसे “बीजेपी की देश में तानाशाही लाने की कोशिश” करार दिया।

संभावित लाभ और चुनौतियाँ

सरकार का तर्क है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि होगी, चुनावी खर्च में कमी आएगी और विकास कार्यों में बाधा कम होगी। बार-बार चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता लागू होने से विकास परियोजनाएँ प्रभावित होती हैं, जिसे एक साथ चुनावों से रोका जा सकेगा। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है और क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक स्वतंत्रता पर असर डाल सकता है।

आगे की राह

संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है। वर्तमान में, एनडीए के पास लोकसभा में 292 सीटें हैं, जबकि राज्यसभा में 112 सीटें हैं, जो आवश्यक बहुमत से कम हैं। इसलिए, सरकार को विपक्षी दलों के साथ संवाद स्थापित कर आम सहमति बनानी होगी। जेपीसी की सिफारिशों और राजनीतिक दलों के बीच संवाद के आधार पर, विधेयकों का भविष्य निर्धारित होगा।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रस्ताव है, जो चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का प्रयास करता है। हालांकि, इसे लागू करने से पहले संवैधानिक, प्रशासनिक और राजनीतिक पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह कदम देश के संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप हो।

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